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UPSC: महाराष्ट्र का एक चरवाहा "बीरदेव सिद्धपा डोणे" बना आइपीएस अधिकारी। आइए जानते हैं कि एक चरवाहे से लेकर एक IPS अधिकारी बनने तक का सफर कैसा रहा??

 

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बिरदेव सिद्धप्पा डोणे: एक चरवाहे से आईपीएस अधिकारी तक का प्रेरणादायक सफर
भारत के ग्रामीण अंचलों में जन्मे कई लोग अपनी मेहनत और लगन से असाधारण उपलब्धियां हासिल करते हैं। ऐसी ही एक प्रेरणादायक कहानी है बिरदेव सिद्धप्पा डोणे की, जिन्होंने महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के यमगे गांव से निकलकर यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा 2024 में 551वीं रैंक हासिल की और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) में स्थान प्राप्त किया। यह उनका तीसरा प्रयास था।
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एक साधारण चरवाहे परिवार से आने वाले बिरदेव की यह यात्रा न केवल उनके समुदाय के लिए गर्व का विषय है, बल्कि उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है जो संसाधनों की कमी के बावजूद बड़े सपने देखते हैं।
बिरदेव का जन्म कोल्हापुर के कागल तालुका के यमगे गांव में एक धनगर समुदाय के परिवार में हुआ, जो परंपरागत रूप से मेंढक पालन करता है। उनके पिता मेंढपाल थे, और परिवार में कोई भी उच्च शिक्षा तक नहीं पहुंचा था। आर्थिक तंगी और सीमित संसाधनों के बीच बिरदेव ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही स्कूल में पूरी की। बचपन में वे सुबह-सुबह भेड़-बकरियों को चराने के लिए जंगलों में जाते, लेकिन उनके मन में हमेशा कुछ बड़ा करने की चाह थी। किताबों के प्रति उनकी रुचि और पढ़ाई के प्रति समर्पण ने उन्हें इस कठिन परिवेश से बाहर निकलने का रास्ता दिखाया।
यूपीएससी जैसी कठिन परीक्षा की तैयारी के लिए बिरदेव को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। गांव में न तो उचित मार्गदर्शन था और न ही कोचिंग संस्थानों की सुविधा। फिर भी, उन्होंने हार नहीं मानी। अपनी प्रारंभिक पढ़ाई पूरी करने के बाद, वे उच्च शिक्षा और यूपीएससी की तैयारी के लिए पुणे और दिल्ली जैसे शहरों में गए। वहां उन्होंने दिन-रात मेहनत की और विभिन्न संसाधनों का उपयोग कर स्व-अध्ययन पर ध्यान केंद्रित किया। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी थी कि कई बार उन्हें अपनी पढ़ाई के लिए छोटे-मोटे काम भी करने पड़े। लेकिन बिरदेव ने इन कठिनाइयों को अपनी मंजिल तक पहुंचने में बाधा नहीं बनने दिया।
बिरदेव की सफलता का राज उनकी जिद, मेहनत और अनुशासन में छिपा है। उन्होंने अपने तीसरे प्रयास में यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पास की। इस उपलब्धि ने न केवल उनके गांव बल्कि पूरे धनगर समुदाय को गौरवान्वित किया। उनकी कहानी उन लोगों के लिए एक मिसाल है जो मानते हैं कि परिस्थितियां उनकी राह में रोड़ा बन सकती हैं। बिरदेव ने साबित किया कि अगर इरादे मजबूत हों और मेहनत सच्ची हो, तो कोई भी सपना असंभव नहीं है।
आज बिरदेव सिद्धप्पा डोणे एक आईपीएस अधिकारी बनने की राह पर हैं। उनकी इस उपलब्धि ने उनके गांव "यमगे" को भी चर्चा में ला दिया है। गांव के लोग, विशेष रूप से युवा, अब बिरदेव को अपना रोल मॉडल मानते हैं। उनकी कहानी सोशल मीडिया पर भी खूब वायरल हुई, जहां लोग उनके संघर्ष और सफलता की सराहना कर रहे हैं। समाचार पत्रों और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स जैसे फ्री प्रेस जर्नल, द इकोनॉमिक टाइम्स और न्यूज18 ने भी उनकी इस प्रेरणादायक यात्रा को प्रमुखता से प्रकाशित किया।
बिरदेव की कहानी हमें सिखाती है कि शिक्षा और मेहनत के बल पर कोई भी अपने सपनों को सच कर सकता है। वे अब न केवल अपने परिवार और समुदाय के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणा बन गए हैं। उनकी सफलता उन लोगों के लिए एक संदेश है जो कठिन परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारते। बिरदेव सिद्धप्पा डोणे का यह सफर हमें याद दिलाता है कि असली जीत वही है, जो चुनौतियों को अवसर में बदल दे।

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